गुरुवार, 2 जुलाई 2009

कटी नाक के फायदे

यहाँ अवतरित एक मुखिया जो कि डाक्टर हैं, अरे वो दवाई वाले डाक्टर नही, बल्कि ये घास-पात के डाक्टर हैं। सुनते हैं कि बहुत कड़क हैं, नाक पर मक्खी नही बैठने देते। यह भी सुना है कि एक बार इनकी नाक पर एक मक्खी बैठ गयी थी तो उन्होने नाक ही कटवा ली, न रहेगी नाक न बैठेगी मक्खी। बताया जाता है कि पूर्व में ये किसी अर्धशाशकीय संस्थान में थे, वहाँ इन्होने पूरा माल काटा, बात खुली तो ये बाहर कर दिये गये। उसी संस्थान में इनकी काफी सेवादारी भी हुई थी, अच्छी तरह हुई थी कई दिन तक हल्दी का दूध पीते रहे थे। इसके बाद उन्हे हल्दी के दूध का स्वाद इतना अच्छा लगा कि वे जहाँ कही भी रहे ऐसी हरकत जरूर करते थे कि हल्दी का दूध पीने की आस पूरी हो जाय।
चूँकि नाक पहले ही कटवा रखी है, इसलिये इन्हे किसी बात की चिन्ता नही है। जैसे वास्तविक संन्त महात्मा, माया-मोह से परे हो जाते हैं वैसे ही ये उन सब बातों से ऊपर हो गये हैं, जिनसे किसी सामान्य आदमी को शर्मिन्दगी होती है। इसका इन्हे बहुत फायदा होता है। चूँकि नाक इतनी सफाई से कटवाई है कि सामान्य-जन को इसका भान ही नही होता कि इनकी नाक कटी हुई है। और जगहों पर उनके हाथ मे शक्ति विराजमान थी कटखने बन्दर की भाँति काटते थे, फिर इनकी पूजा हो जाती थी तब हल्दी का दूध पी कर पड़ जाते थे। यहाँ आने के बाद उन्होने बताया कि उनके हाथ मे उस्तरा आ गया है, एक तो कटखना बन्दर, दूसरे हाथ में उस्तरा, बड़ी चिरेंज काटी, फिर एक दिन पता चला कि उनके उस्तरे की धार कुन्द कर दी गयी है। मालुम हुआ की उन्होने मदारी को ही उस्तरा दिखा दिया था, इस पर मदारी ने उनके उस्तरे की धार को भोथरा करवा दिया। फिर भी, जैसे चोर चोरी से जाय पर हेराफेरी से नही जाता, उसी प्रकार स्थानीय स्तर पर उनकी हरकतें उसी कटखने बन्दर जैसी हैं, यह जानते हुए कि उस्तरे की धार भोथरी हो चुकी है फिर भी भाँजे जा रहे हैं, शायद इस आस में कि भले ही मार न सके चोटिल तो कर ही सकते है।
सामान्य-जन जो इस बात को जान गये हैं कि उस्तरे की धार भोथरी हो चुकी है, उन्हे इसकी प्रसन्नता है। बस इन्तजार है कि कब इन्हे हल्दी दूध पीने का अवसर प्रदान हो।

1 comments:

शशांक शुक्ला ने कहा…

अरे बंदर के हाथ में उस तरह(उस्तरा) या इस तरह वो कुछ भी आये वो खुद को ही चोट लगवायेगा। बहुत दिनों बाद दर्शन दिये ब्लाग जगत में,,,अच्छा लिखा है मज़ा आ गया। किस पर कमेंट है।