रविवार, 5 जुलाई 2009

एक वैश्य की कहानी

एक दिन की बात है, मैं कही जा रहा था, कहाँ जा रहा था यह बताने की आवश्यकता नही है। एक जगह देखा कि रास्ते में बड़ी भीड़ लगी है। उत्सुकतावश मैं भी वहाँ चला गया। वहाँ देखा तो पता चला कि एक आदमी सड़क के किनारे बने गड्ढे में गिर गया है, गड्ढा बहुत गहरा नही था पर इतना गहरा जरूर था कि वह आदमी खुद-ब-खुद नही निकल सकता था। मैंने वहाँ लगी भीड़ में से एक आदमी से पूछा कि क्या हो गया है? उसने जबाब दिया 'एक बावला सा आदमी गड्ढे में गिर गया है, लोग उसे निकालने का प्रयास कर रहें है पर वो है कि जैसे निकलने को तैयार ही नही, अजीब आदमी है'
मैं गड्ढे के नजदीक पहुँचा तो देखता हूँ कि कई आदमी गड्ढे के किनारे बैठ कर अपना हाथ गड्ढे में डाले चिल्ला रहे है, 'हाथ दे, हाथ दे, अबे हाथ क्यों नही देता'

मैंने गड्ढे में झाँका तो सारा माजरा समझ में आ गया। मैने वहाँ मौजूद लोगों से कहा – आप लोग चिन्ता न करें, इस आदमी को मैं पहचानता हूँ, और अभी गड्ढे से निकाल देता हूँ। आप लोग जरा किनारे हट जायँ ताकि मैं आराम से वहाँ बैठकर उससे बात कर सकूँ।
सारे आदमी वहाँ से हट गये, फिर मैंने अपना हाथ गड्ढे में लटका कर उस आदमी की ओर मुखातिब होकर कहा – लो रामलाल हाथ लो। इतना सुनते ही उसने लपक कर मेरा हाथ पकड़ लिया, और मैंने उसे गड्ढे के बाहर खींच लिया। उसके बाहर निकलते ही लोगों ने उसे घेर लिया और लगे बुरा-भला कहने। लोगों ने मुझे भी घेर लिया और कहने लगे कि वाह भई आप के हाथ में वह कौन सा जादू है जिससे इस आदमी को पलक झपकते ही गड्ढे से बाहर निकाल लिया, यह तो लगभग एक घन्टे से सबका खून पी रहा था। मैंने लोगों को राज की बात बताई। मैंने कहा – इस आदमी को मैं पहचानता था, यह हमारे कस्बे का बनिया रामलाल है। बनिया होने के नाते इसने कभी देने का नाम ही नही सुना, वह तो केवल लेना ही जानता है; इसीलिये मैंने इससे हाथ देने की बात ही नही की, जैसा आप लोग कर रहे थे। मैंने तो केवल यही कहा कि रामलाल हाथ लो, और इसने इतना सुनते ही झपट कर मेरा हाथ पकड लिया और बाहर आ गया।