मंगलवार, 13 जनवरी 2009

भारत के लोकतंत्र का दर्द

1.   हत्यारे मुख्य मंत्री बने हैं।

2.   जिनको जेल मे सड़ना चाहिए, वे आजाद लोगों को जेल भिजवा रहे हैं।

3.   विदेशी वैज्ञानिकों ने रोबोट बनाए जो अनेक कार्य कर सकते हैं जैसे कारखाने मे, खेल मे पर हमारे देश में एक विदेशी जो वैज्ञानिक नही है, उसने ऐसा रोबोट बनाया जो देश चला रहा है।

4.   जिनसे पूरा क्षेत्र भयभीत होता है, जिन्हें देख लोग घरों मे छिपते हैं, उनकी सुरक्षा जेड प्लस सेक्योरिटी से होती है।

5.   जेल मे बन्द कैदी जिसके रिहाई की अपील अदालत मे रद्द होती थी, अचानक जुगाड़ से मुख्य मंत्री बन जाता है।

6.   आतंकवाद की घटनाओं के बाद यहाँ के टेलीविजन चैनल सुरक्षा कार्यवाही का लाइव टेलीकास्ट कर आतंकी के आकाओं को पल पल की सूचना पहुँचा कर अपना तथाकथित टी.आर.पी. बढ़ाते हैं।

7.   आतंकी जो सैकड़ो निरीह देशवासियों की जान लेता है उसे बचाने हेतु तथाकथित मानवाधिकारी व वोट बैंक के भूखे तथाकथित सेक्युलर नेता आगे आ जाते हैं।

 

दर्द और भी बहुत हैं, फिर कभी

 

सोमवार, 12 जनवरी 2009

शेखावत का तमाशा


 

पराई आग में रोटी सेंकना शायद इसे ही कहते हैं, शेखावत के निम्न स्तर का राजनीति को भरपूर समर्थन देने रा.कां.पा. आ गई। उनहोने यह कह दिया कि उपराष्ट्रपति बनने के पूर्व शेखावत जी ने भा.ज.पा. से इस्तीफा दे दिया था। रा.कां. पा. के महासचिव डी.पी.त्रिपाठी भला ऐसा स्वर्णिम अवसर कैसे गवां सकते थे, सो उन्होने शेखावत के इस कदम का स्वागत किया और उनके लिए समर्थन जुटाने का वादा भी किया। शेखावत को इसका आभार जताना चाहिए के आखिर कोई तो उन्हे अपना घर जलाने के लिए पेट्रोल देने का वायदा किया।

शेखावत जी अपने कदम वापस खीचेंगे, इसकी संभावना कम है परन्तु अभी इस पर कुछ कहा नही जा सकता। कहते हैं इतिहास स्वयं को दोहराता है, शेखावत जी इसे साबित करने पर तुले हुए हैं। पूर्व में भी अपने यहाँ जयचन्द थे, अब नये स्वरूप में शेखावत के नाम से आए हैं। सत्ता का इतना मोह इस वयोवृद्ध नेता को हो गया है कि उन्हे अपना बुरा भला नही देख पा रहे,तथा पार्टी को सत्यानास करने पर तुल गये हैं। कब्र में पॉव लटके हुए हें, किन्तु प्रधान मंत्री का दिवा स्वप्न ठीक दुर्योधन की भाँति देख रहे है भले ही इसकी बड़ी कीमत पार्टी को चुकानी पड़ जाय।

जिस प्रकार पेड़ में अपनी शाखा से अलग होकर कोई डाली हरी भरी नही रह सकती, कुछ ही दिनों मे सूख जाती है तथा उससे पेड़ का कुछ नही बिगड़ता, उसी प्रकार शेखावत जी, जिस पार्टी के सहारे अपनी राजनीतिक स्थिति बढ़ाई उससे बगावत कर स्वयं अपना विनास कर लेंगे। शेखावत नाम की बीमारी का उसी प्रकार इलाज होना चाहिए जिस प्रकार शरीर के किसी अंग मे पनप रहे नासूर का होता है। शेखावत जी संभलो नही तो नाम लेने वाला कोई नही मिलेगा।

रविवार, 11 जनवरी 2009

भाजपा की मुसीबत

आजकल भैरोसिंह शेखावत को क्या हो गया है। वे बिना किसी बात के भाजपा के लिए मुसीबत बन रहे हैं। ऐसा लगता है कि वे छपास रोग से पीड़ित हो गए हैं, उन्हें आराम की बहुत जरूरत है। एक वयोवृद्ध संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता को ऐसा आचरण करना कुछ समझ में नहीं आता। वे उपराष्ट्रपति पद को सुशोभित कर चुके हैं व राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रह चुके हैं, उन्हें अब लोकसभा के चुनाव लड़ने की क्या सूझी है? वे भाजपा के वरिष्ठ नेता हें उनका मूल मकसद पार्टी को सही राह दिखाना होना चाहिये, परन्तु वे अकारण ही पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी कर रहे हैं। एक पुरानी कहावत है सूत न कपास, जुलाहों मे लठ्ठम लठ्ठावही हाल यहाँ है। आगामी चुनाव में क्या होगा, अभी से इसके बारे में कुछ कहना अतिशयोक्ति होगा, परन्तु शेखावत जी को प्रधान मंत्री के सपने आने शुरु हो गये। निम्न स्तर के नेता से तो ऐसा उम्मीद की जा सकती है, जिसका मूल मकसद किसी न किसी प्रकार चर्चा बना रहना होता है, परन्तु उनके जैसे वरिष्ट नेता का ऐसा आचरण करना शोभा नहीं देता।

माना कि भाजपा में कई अवगुण घर कर रहे हैं, उन जैसो का कार्य उन अवगुणों को दूर करना होना चाहिए न कि पार्टी के लिये संकट पैदा करना। उनका यह कहना, कि वे तब से राजनीति में हैं जब राजनाथ सिंह पैदा भी नही हुये थे, कहीं न कहीं ओछी मानसिकता का द्योतक है। उनके मन मे अवश्य ही यह चुभन उठी कि मैं बड़ा हूं और मुझसे अधिक ज्ञानी कोई और कैसे हो सकता है।

अपने देश में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति से बड़ा कोई अन्य संवैधानिक पद नही है, इस पद को सुशोभित कर चुके व्यक्ति के मन में ऐसे विचार आना क्या संकेत देता है? शेखावत जी ने ऐसी बयान बाजी कर के खुद को हम जैसे करोड़ो लोगों की नजरों मे गिरा लिया। अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में कमाई हुई संपदा को पल भर में मिट्टी मे मिला दिया। उनके जैसे व्यक्ति, ऐसे विचार व्यक्त कर समाज व भविष्य के राजनीतिक कर्णधारों को क्या संदेश देना चाहते हैं?  

जिस प्रकार किसी बालक की पहचान उसके माता पिता से होती है, उसी प्रकार किसी भी संस्था से जुड़े व्यक्ति की पहचान उसके संस्था से होती है। कभी- कभी किसी का दिमाग घूमने पर उसे लगता है कि उसका वजूद संस्था से नही बल्कि संस्था का वजूद उससे है, बस यहीं से उसका पतन प्रारम्भ हो जाता है। शायद शेखावत जी को भी यही लग रहा है कि उनसे ही संस्था का वजूद है, इसीलिए बिना सिर पैर की बात कह कर पार्टी को बरबाद करने पर तुल गये हैं। हो सकता है कि उनके दिमाग में कोई कीड़ा घुस गया हो और वे बहक गये हों। ऐसे में उनका इलाज करना आवश्यक है अन्यथा वे इस रोग के कीड़े का संवाहक बन कर अनेकों को बीमार कर देंगे।

राजनाथ सिंह ने जो कहा है कि उच्च संवैधानिक पद को सुशोभित करने के बाद लोकसभा का चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त करना, गंगा स्नान करने के बाद कुएं पर स्नान करने के बराबर है, तनिक भी अनुचित प्रतीत नहीं होता। इस कथन पर शालीनता से विचार करने के बजाय उन्होने तीखी प्रतिक्रिया करते हुये कह दिया कि वे तब से राजनीति मे हैं जब राजनाथ सिंह जब पैदा ही नही हुये थे। यह कह कर वे क्या जताना चाह रहे हैं?, यही न कि वे बहुत वरिष्ठ हैं और उन्हे सब कुछ करने का अधिकार है? अरे शेखावत जी उम्र मे बड़ा होने से कोई बड़ा नहीं हो जाता, बड़ा होने का मतलब यह है के वे बड़प्पन दिखाएं, न कि अत्यन्त निम्न स्तर की राजनीति करें।

शेखावत जी द्वारा लोकसभा के चुनाव लड़ने की बात कहना व उसे कुतर्क से सही सिद्ध करना अत्यन्त निन्दनीय है, ऐसे निन्दनीय कृत्य कर अगर वे अपने आप को वरिष्ठ नेता होने की बात करते हैं तो यह उनके मानसिक दिवालियेपन का द्योतक है, ऐसा कर वे खुद अपना व संस्था का अहित कर रहे हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि उन्होने अपने बड़प्पन को मिट्टी में मिला दिया है, उन्हे अच्छी सीख देने वाले का वे वही हाल करने पर उतारू हैं जैसे कि बन्दर ने बया के घोंसले का किया था।

शेखावत जी ने अपने आप को इतना छोटा कर दिया है कि, वे कुएं को कौन कहे गन्दे नाले में स्नान करने को उतारू हैं। भगवान उन्हे सत्बुद्धि दे।