शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

भारत सरकार को डर नही लगता

अभी कुछ दिन पूर्व एक समाचार पत्र में पढ़ा कि रिजर्व बैंक ने देश में अंधाधुन्ध आ रही नकली मुद्रा को लेकर आगाह किया, इस पर हमारे वित्त मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि यह उनकी नजर में कोई बड़ा खतरा नहीं है। चूंकि उसकी नजर ही सरकार की नजर है इसलिए सरकार भी इसको लेकर भयभीत नहीं है। उन्होने बाकायदा आंकड़े प्रस्तुत कर यह सिद्ध किया कि नकली करेंसी अभी कुल मुद्रा की 0.001 प्रतिशत ही है। जब तक एक के पहले लगने वाले शून्य एक के बाद में लगने न शुरु हो तब तक कोई खतरे की बात नहीं है। उन्होने यह भी कहा कि भारत छोटा मोटा देश नहीं है। हमें घबराने की जरूरत नही है। सरकार नकली मुद्रा लाने वालों पर स्टेनलेस स्टील से भी कड़ी नजर रख रही है। समस्या यह है कि स्टेनलेस स्टील पारदर्शी नही होता इसीलिये इस तरह की नजर रखने के बावजूद कुछ दिन पूर्व डुमरिया गंज जिला- सिद्धार्थ नगर, उत्तर प्रदेश के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के करेंसी चेस्ट में करोड़ों के नकली नोट बरामद हुए थे। वित्त मंत्री जी को व उनकी सरकार को ऐसी कई बातों से भय नही लगता न लगा, जिसका वर्णन उन्होने अभी नही किया है पर भविष्य मे कर सकते हैं वे निम्नवत हैं।

  • देश में आतंक वादी खुलेआम आयें, घूमें, कहाँ बम फोड़ना है इसकी रूपरेखा बनाएं और उसे पूरा करें। इस काम में सरकार व उसकी एजेंसियों का पूरा सहयोग मिलेगा, क्योंकि इनके कार्यों से सरकार नही मरती मरते है केवल आम आदमी जिसकी यहाँ बहुतायत है, करोड़ों में से कुछ हजार कम भी होते हैं तो कोई चिन्ता की बात नही। सरकार को इससे भय नही लगता क्य़ोंकि घटना के बाद बड़ी-बड़ी बातें कर वोट लूटने की काफी गुँजाइस रहती है।
  • काश्मीर से हिन्दुओं को खदेड़ा जाय, उनकी सम्पत्ति लूटी जाय, वे बेघर होकर दिल्ली व अन्य नगरों में नरकीय जीवन व्यतीत करें, इससे भी सरकार को भय नही लगता क्योंकि हिन्दू हैं ही इसी लायक। अगर इससे सरकार भयभीत हो जायेगी तो सरकार को खतरा हो जायेगा अतऐव वह इससे भयभीत नहीं, बल्कि प्रसन्न होती है कि हिन्दू इसी तरह पीटे-कुचले जाने से उसका वोट बैंक बढ़ता है।
  • असम में उल्फा आतंकवादियों द्वारा सैकड़ो निरीहों को मारने से भी सरकार भयभीत नही होती, इससे उसे राजनीति करने के नये आयाम मिलते हैं।
  • सरकार महराष्ट्र के मनसे व शिवसेना के गुंडो से भी भयभीत नही होती, वह तो इसे शह देती है क्योंकि इसमें हिन्दू ही आपस मे कटते-मरते है। अलगाव-वाद फैलता है जो सरकार के लिए खाद का काम करती है, भला इससे भयभीत क्यों हुआ जाय।
  • सरकार बम्बई, दिल्ली, अहमदाबाद शहरों मे हुए आतंकवादी घटनाओं से भी भयभीत नही होती, क्योकि इसमें कहीं भी सरकार नही मरी। आतंकवादी तो सरकार का काम आसान ही कर रहें है, ऐसी घटनाओं से आबादी में कमी आती है और सरकार को बन्दर प्रयास करने का अवसर प्राप्त होता है।
  • मधु कोड़ा जैसे लोगों द्वारा लूटपाट कर धन विदेशों में लगाने जैसी घटनाओं से भी सरकार चिन्तित नही होती, क्योकि देश मे धन की कोई कमी नहीं है, गजनी से लेकर अंग्रेज व अब देसी अंग्रेज लूट ही रहें है, इससे कोई फर्क तो पड़ा नही, क्योकि आतंकवादी नकली नोट तो ला ही रहे हैं।
  • देश को टुकड़ों में बाँटने वालों से भी सरकार भयभीत नही होती, भारत बहुत बड़ा देश है यदि इसके बीस-पच्चीस टुकड़े हो भी जाते हैं तो क्या फर्क पड़ेगा, इससे तो सरकार के मंत्रियों की संख्या ही बढ़ेगी।

    सरकार तो डरती है केवल निम्नलिखित बातों से इसीलिये वह अपनी पूरी ताकत इन्हें नष्ट करनें में लगाती है, और काम के लिये सरकार के पास न तो समय है न ही इच्छा शक्ति।

    • राष्टीय स्वयं सेवक संघ से।
    • हिन्दू एकता से।
    • मुसलमानों से वन्देमातरम् कहने वालों से।
    • देश हित की बात कहने वालों से।
    • देश की एकता और अखन्डता की केवल बातें न कर ऐसा प्रयास करने वालों से।
    • एक देश- एक कानून की माँग करने वालों से।

शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

यह क्या हो रहा है

मुरादाबाद में कांग्रेस की नेत्री रीता बहुगुणा ने एक भाषण दिया, जिसकी भाषा वास्तव में अभद्र थी। हमारे देश के पुरुष नेता मुद्दत से ऐसी भाषा का प्रयोग करते आ रहे है। हमारे देश के इन कथित नेताओं का नैतिक स्तर बहुत पहले से ही रसातल में जा चुका है। जब ये नेता संसद के भीतर भी ऐसा कह जाते हैं कि उन अंशों को संसदीय कार्यवाही से निकालना पड़ता है, तो इनका स्तर क्या है इसकी कल्पना सहज की जा सकती है। महिला आयोग काफी समय से यह प्रयास कर रहा था कि महिलाओं को पुरुष के बराबर अधिकार मिले, अन्य अधिकार अभी भले न मिले हों पर अभद्र भाषा के प्रयोग में उन्होने यह अधिकार हाँसिल कर ही लिया। इस पर महिला आयोग शायद गर्व महसूस करें। मायावती स्वयं भी शालीन भाषा का प्रयोग बहुत कम करती है। रीता बहुगुणा ने महिला होकर भी एक महिला के बारे में ऐसी अभद्र भाषा का प्रयोग किया और इस के कारण उनकी निन्दा होती या कोई मुकदमा चलाया जाता अथवा इस विषय में बहस होती तो बात और थी, परन्तु चर्चा का विषय महिला न होकर दलित महिला का हो गया है जिसकी निन्दा की जानी चाहिये। उन पर मुकदमा भी दलित अपमान का हुआ है गोया यदि उन्होने किसी दूसरी महिला जो दलित समाज से नही आती पर टिप्पणी की होती तो शायद इतना शोर न मचता नही, न ही तथाकथित निष्पक्ष समाचार देने वाले न्यूज चैनल इसकी निन्दा करते। यह बड़े शर्म की बात है कि रीता बहुगुणा के भाषण कि निन्दा होनी चाहिये थी महिला के प्रति अपमान जनक बात कहने की पर निन्दा हो रही है दलित महिला के प्रति अपमान जनक बात कहने की। क्या इस पर कोई विचार करने को तैयार है? आज के इस जातियों में बँटे समाज में शायद नहीं

मंगलवार, 7 जुलाई 2009

केन्द्रीय बजट-एक तमाशा

वित्त मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी द्वारा प्रस्तुत केन्द्रीय बजट में भी ऐसा प्रतीत होता है कि केन्द्रीय सरकार ने अपने मिले वोटों का कर्ज चुकाने का प्रयास किया गया है। बजट की कुछ सुर्खियाँ निम्नवत है
• मदरसों के शिक्षकों का मानदेय तीन गुना किया गया।
• अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के केरल एवम् मुर्शिदाबाद में 25-25 करोड़ रुपये की लागत से कैम्पस बनाने की घोषणा।
• गरीबों की हितैषी सरकार अब क्रूड आयल के दाम बढ़ने पर उससे वसूल करेगी।
• डाक्टर व वकील की फीस में 10.24 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी।
• वित्त मंत्री के इन्द्रजाल का उल्टा असर शेयर बाजर पर, अच्छा गोता खाया।
• गरीबी घटाने नही, पूर्व प्रधान मंत्री श्रीमति इन्दिरा गाँधी के तर्ज पर गरीबी हटाने का वादा।
यह कुछ मुख्य बिन्दु हैं, वोटों के कर्ज को चुकाने का सिलसिला जारी है। टैक्स द्वारा वसूल किये गये धन का मुस्लिम तुष्टिकरण हेतु लुटाने के सिलसिले को जारी रखते हुए, वित्त मंत्री ने मुस्लिम संस्थाओं के आँगन में पैसों की बारिस कर दी है। बजट का घाटा इस कदर है कि प्रत्येक भारतीय नागरिक गर्व से कह सकता है कि मेरे ऊपर लगभग 1200 रुपये का विदेशी कर्ज है। वैसे विदेशी चीजों का हमारे देश में बहुत क्रेज है फिर वह चाहे कर्ज ही क्यों न हो।
न्याय की आस में भटकने वालों के लिये एक शुभ सूचना है कि उन्हे मिलने वाले न्याय की कीमत 10.24 प्रतिशत बढ़ा दी गयी है, आखिर जब सभी वस्तुओं के दामों में बढ़ोत्तरी हो रही है तो न्याय को इससे अलग कैसे रखा जा सकता है, इसी प्रकार बार-बार डाक्टर के पास जाने वाले भी सावधान! भई बीमार मत पड़ो,यही शिक्षा दी है काबिल वित्त मंत्री जी ने। डाक्टरों की फीस में भी 10.24 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करने का ऐलान है इस बजट में।
शेयर बाजार में धन लगाने वाले छोटे निवेशकों को भी जोर का झटका धीरे से लगा है, सेंसेक्स में 5.83 प्रतिशत की वृद्धि (ऋणात्मक ही सही) हुई है।
नई बोतल में पुरानी शराब परोसते हुए राष्ट्रीय ग्रामीण जीविका मिशन नाम की योजना लायी है, जिसके लागू होने पर हमारे देश से गरीबी ऐसे भाग जाएगी जैसे कभी थी ही नही। ऐसा पिछले कार्यकाल में ही हो जाता पर वाम मोर्चा ने कुछ होने नही दिया, इस बार से पूरे मन से प्रयास किये जायेंगे और देश से गरीबी गधे के सिर से सींग की तरह गायब कर दी जायेगी, ताकि अगले चुनाव में गरीबों का हाथ कांग्रेस के साथ जैसे नारों की जरूरत ही पड़े।

रविवार, 5 जुलाई 2009

एक वैश्य की कहानी

एक दिन की बात है, मैं कही जा रहा था, कहाँ जा रहा था यह बताने की आवश्यकता नही है। एक जगह देखा कि रास्ते में बड़ी भीड़ लगी है। उत्सुकतावश मैं भी वहाँ चला गया। वहाँ देखा तो पता चला कि एक आदमी सड़क के किनारे बने गड्ढे में गिर गया है, गड्ढा बहुत गहरा नही था पर इतना गहरा जरूर था कि वह आदमी खुद-ब-खुद नही निकल सकता था। मैंने वहाँ लगी भीड़ में से एक आदमी से पूछा कि क्या हो गया है? उसने जबाब दिया 'एक बावला सा आदमी गड्ढे में गिर गया है, लोग उसे निकालने का प्रयास कर रहें है पर वो है कि जैसे निकलने को तैयार ही नही, अजीब आदमी है'
मैं गड्ढे के नजदीक पहुँचा तो देखता हूँ कि कई आदमी गड्ढे के किनारे बैठ कर अपना हाथ गड्ढे में डाले चिल्ला रहे है, 'हाथ दे, हाथ दे, अबे हाथ क्यों नही देता'

मैंने गड्ढे में झाँका तो सारा माजरा समझ में आ गया। मैने वहाँ मौजूद लोगों से कहा – आप लोग चिन्ता न करें, इस आदमी को मैं पहचानता हूँ, और अभी गड्ढे से निकाल देता हूँ। आप लोग जरा किनारे हट जायँ ताकि मैं आराम से वहाँ बैठकर उससे बात कर सकूँ।
सारे आदमी वहाँ से हट गये, फिर मैंने अपना हाथ गड्ढे में लटका कर उस आदमी की ओर मुखातिब होकर कहा – लो रामलाल हाथ लो। इतना सुनते ही उसने लपक कर मेरा हाथ पकड़ लिया, और मैंने उसे गड्ढे के बाहर खींच लिया। उसके बाहर निकलते ही लोगों ने उसे घेर लिया और लगे बुरा-भला कहने। लोगों ने मुझे भी घेर लिया और कहने लगे कि वाह भई आप के हाथ में वह कौन सा जादू है जिससे इस आदमी को पलक झपकते ही गड्ढे से बाहर निकाल लिया, यह तो लगभग एक घन्टे से सबका खून पी रहा था। मैंने लोगों को राज की बात बताई। मैंने कहा – इस आदमी को मैं पहचानता था, यह हमारे कस्बे का बनिया रामलाल है। बनिया होने के नाते इसने कभी देने का नाम ही नही सुना, वह तो केवल लेना ही जानता है; इसीलिये मैंने इससे हाथ देने की बात ही नही की, जैसा आप लोग कर रहे थे। मैंने तो केवल यही कहा कि रामलाल हाथ लो, और इसने इतना सुनते ही झपट कर मेरा हाथ पकड लिया और बाहर आ गया।

गुरुवार, 2 जुलाई 2009

कटी नाक के फायदे

यहाँ अवतरित एक मुखिया जो कि डाक्टर हैं, अरे वो दवाई वाले डाक्टर नही, बल्कि ये घास-पात के डाक्टर हैं। सुनते हैं कि बहुत कड़क हैं, नाक पर मक्खी नही बैठने देते। यह भी सुना है कि एक बार इनकी नाक पर एक मक्खी बैठ गयी थी तो उन्होने नाक ही कटवा ली, न रहेगी नाक न बैठेगी मक्खी। बताया जाता है कि पूर्व में ये किसी अर्धशाशकीय संस्थान में थे, वहाँ इन्होने पूरा माल काटा, बात खुली तो ये बाहर कर दिये गये। उसी संस्थान में इनकी काफी सेवादारी भी हुई थी, अच्छी तरह हुई थी कई दिन तक हल्दी का दूध पीते रहे थे। इसके बाद उन्हे हल्दी के दूध का स्वाद इतना अच्छा लगा कि वे जहाँ कही भी रहे ऐसी हरकत जरूर करते थे कि हल्दी का दूध पीने की आस पूरी हो जाय।
चूँकि नाक पहले ही कटवा रखी है, इसलिये इन्हे किसी बात की चिन्ता नही है। जैसे वास्तविक संन्त महात्मा, माया-मोह से परे हो जाते हैं वैसे ही ये उन सब बातों से ऊपर हो गये हैं, जिनसे किसी सामान्य आदमी को शर्मिन्दगी होती है। इसका इन्हे बहुत फायदा होता है। चूँकि नाक इतनी सफाई से कटवाई है कि सामान्य-जन को इसका भान ही नही होता कि इनकी नाक कटी हुई है। और जगहों पर उनके हाथ मे शक्ति विराजमान थी कटखने बन्दर की भाँति काटते थे, फिर इनकी पूजा हो जाती थी तब हल्दी का दूध पी कर पड़ जाते थे। यहाँ आने के बाद उन्होने बताया कि उनके हाथ मे उस्तरा आ गया है, एक तो कटखना बन्दर, दूसरे हाथ में उस्तरा, बड़ी चिरेंज काटी, फिर एक दिन पता चला कि उनके उस्तरे की धार कुन्द कर दी गयी है। मालुम हुआ की उन्होने मदारी को ही उस्तरा दिखा दिया था, इस पर मदारी ने उनके उस्तरे की धार को भोथरा करवा दिया। फिर भी, जैसे चोर चोरी से जाय पर हेराफेरी से नही जाता, उसी प्रकार स्थानीय स्तर पर उनकी हरकतें उसी कटखने बन्दर जैसी हैं, यह जानते हुए कि उस्तरे की धार भोथरी हो चुकी है फिर भी भाँजे जा रहे हैं, शायद इस आस में कि भले ही मार न सके चोटिल तो कर ही सकते है।
सामान्य-जन जो इस बात को जान गये हैं कि उस्तरे की धार भोथरी हो चुकी है, उन्हे इसकी प्रसन्नता है। बस इन्तजार है कि कब इन्हे हल्दी दूध पीने का अवसर प्रदान हो।

शुक्रवार, 12 जून 2009

केन्द्र सरकार की स्वीकरोत्ति

आखिरकार नयी केन्द्र सरकार ने मुसलमानों के मिले वोट का कर्ज चुकाते हुए यह कबूल कर लिया कि संसद हमले का दोषी अफजल अपनी प्राकृतिक मौत ही मरेगा। दैनिक जागरण मे छपे समाचार के अनुसार केन्द्रीय मन्त्री वीरप्पा मोइली ने यह कबूल कर लिया कि अफजल को फाँसी देना केन्द्र सरकार के बूते में नही है। सन्दर्भ हेतु समाचार के कुछ अंश प्रस्तुत हैं।

    "आठ साल पहले संसद पर हुए आतंकी हमले के दोषी अफजल गुरू की फांसी में 25 साल भी लग
सकते हैं। निकट भविष्य में उसकी फांसी तो कतई संभव नहीं है। कानून मंत्री एम.
वीरप्पा मोइली ने इस बात की स्वीकरोत्ति दी हैं। बताते चलें कि राष्ट्रपति के पास इस समय 28 दया याचिकाएं लंबित हैं।"

    यह तो होना ही था, इसमे आश्चर्य करने जैसी कोई बात नही है। सुरक्षा एजेन्सियाँ जिन आतंकवादियों को जान हथेली पर रखकर पकड़ती है, कांग्रेस नीत सरकार उनकी सेवा मे जुट जाती है, आखिर वोट का सवाल है। पृथ्वीराज के युग में तो एक जयचन्द था, इस युग मे तो जयचन्दों की भीड़ है। आखिर आतंकियों को उनके मंजिल तक सुरक्षित रख हिन्दुस्तान को दारुल हरब से दारुल इस्लाम बनाने मे मदद जो करनी है।

    असली गलती तो सुरक्षा बलों की है कि वे उन आतंकवादियों को पकड़ते क्यों हैं, उन्हे मार क्यों नही देते। उन्हें पकड़कर ऐसे मुस्लिम वोट के लोभी नेताओं को मेहमान नवाजी का अवसर क्यों देते हैं।


 

रविवार, 19 अप्रैल 2009

दोहरी मानसिकता वाला चुनाव आयोग

मुख्य चुनाव आयुक्त का कथन कि वरुण गाँधी का बयान जहरीला था। चुनाव आयोग का यह कथन अपेक्षा के अनुरूप है क्योंकि उन्होने पहले ही भाजपा को बिना मांगे ही सलाह दे दी थी कि वरुण गाँधी को प्रत्याशी न बनाया जाय। चुनाव आयोग को लालू का बयान जो उन्होने पूर्व मे दिया था और एक बयान अभी आया है कि ‘आडवानी जी तो रिफ्यूजी है असली हिन्दू तो हम है’, शायद शहद के स्वाद जैसा लगेगा क्योंकि चुनाव आयोग दोहरी मानसिकता वाले आयुक्तों से इससे अधिक की अपेक्षा नही की जा सकती।
आंन्ध्र प्रदेश सोनिया पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का बयान ‘अगर किसी ने मुसलमानों की तरफ उंगली उठायी तो उसका हाथ काट डालेंगे‘, चुनाव आयोग को किसी प्रवचन की भाँति लगा शायद इसीलिए उन्होने इस पर चुप्पी साधना आवश्यक समझा। वरुण गाँधी का बयान तो इन तथाकथित सेक्युलर नेताओं के बयान के आगे कुछ भी नही था। बिहार की, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी (प्रदेश पर थोपी गई, क्योंकि यदि लालू चारा घोटाले में न फँसते तो उनका मुख्यमंत्री बनना असम्भव था) ने तो गाली बकनी शुरु कर दिया है। ये बौखलाये व जनाधार खोते नेता अब आँय-बाँय बक रहे हैं। चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया आपेक्षित है।
उपकृत चुनाव आयोग से और अपेक्षा ही क्या हो सकती है?

रविवार, 12 अप्रैल 2009

चुनाव मे बावले होते नेता

अभी एक समाचार पढ़ा जिसमे भारत के वर्तमान विदेश मन्त्री प्रणव मुखर्जी ने असम के सिलचर मे कांग्रेस के बुद्धि-परजीवी (तथाकथित बुद्धिजीवी) की बैठक मे एक रहस्योद्घाटन किया कि हिन्दुत्व भारतीयों का दर्शन नही है। इस खोज के लिए वर्तमान सरकार संभवतः इनका नाम नोबुल प्राइज के लिए नामित करने का प्रयास करेगी। अच्छा हुआ प्रणव ने यह बता दिया नही तो अभी लोग इसी भ्रम मे थें कि हिन्दू सनातन धर्म है और हिन्दुतव का दर्शन भारत का मूल दर्शन है। लेकिन मंत्री जी आखिर ठहरे संकुचित सोच वाले नेता। वही थूक कर भाग जाने वाली बात करी है, लगे हाथ उन्हे यह भी बताना चाहिए कि आखिर हिन्दुत्व कहाँ का मूल दर्शन है और भारतीयो का मूल दर्शन क्या हैं। वोटों की इस मंडी मे अगर वे इसको भी बताते तो शायद कुछ वोटों का फायदा भी हो सकता था। मंत्री जी मैकाले के मानस पुत्रों की श्रृंखला मे से ही एक हैं, उनके ज्ञान दर्शन का इतिहास तो अंग्रेजों की या इससे पूर्व मुसलमानों की गुलामी से ही प्रारम्भ होता है। इसके पूर्व तो वे जा ही नही सकते। अपने देश के पूर्व इतिहास की बातें तो इन्हे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा गढ़ी हुई लगती होंगी। वोटों की इस गंदी राजनीति मे नेता इस स्तर तक गिर जायेंगे इसकी उम्मीद शायद किसी ने न की थी। प्रणव इसके अपवाद नही हैं, हम भारतीय,हजारों सालों के मुसलमानों और अंग्रेजों की गुलामी को अपने खून मे मिला लिया है। अब तो अपने भाईयों के लिए इनका खून गर्म भी नही होता। शायद इन्हें अपने पूर्वजों पर क्रोध भी आता होगा, कि उन्होने इन्हे हिन्दू संतान के रूप में क्यों पैदा किया।

एक और समाचार- मोदी ने कांग्रेस को बुढ़िया क्या कह दिया, ऐसा लगता है कि जैसे आसमान फट पड़ा। महिला आयोग को बुरा लगा, आयोग की महिलाओं ने उनको कोसना शुरू कर दिया। भला कोई उनसे पूछे कि ऐसा क्या कह दिया कि ये महिलाएं आसमान सर पर उठा रही हैं, शायद उन्हे आने वाले अपने बुढ़ापे का ध्यान आ गया होगा। उन महिला सदस्यों से कोई यह पूछे कि ने अपने बूढ़ी सास की कितनी सेवा करती हैं, शायद हजार में कोई एक होगी, लेकिन छपास रोग से पीड़ित महिला आयोग अपनी बाँहे चढ़ा रहा है। इधर प्रियंका बढ़ेरा ने अमेठी मे लोगों से पूछा कि क्या वे बूढ़ी लग रही हैं। अब भला प्रियंका को कौन कहे कि मोदी ने 125 वर्ष की कांग्रेस को बूढ़ी कहा था, कही प्रियंका बढ़ेरा स्वयं को कांग्रेस तो नही समझ रही हैं, वैसे अगर वे ऐसा समझती है तो कांग्रेस के लिए कोई नयी बात नही है। गांधी परिवार के अतिरिक्त कांग्रेस में है क्या? लेकिन राहुल गांधी के किए खतरे की घंटी बज सकती है। अगर प्रियंका बढ़ेरा ने कांग्रेस पर कब्जा कर लिया तो क्या होगा, कांग्रेस की कमान गांधी परिवार से निकल कर बढ़ेरा परिवार मे चली जाएगी और राहुल गांधी की स्थिति अर्जुन सिंह जैसी हो जायेगी।

चन्द वोटों के लिए देश की अस्मत का सौदा करने वाले तथाकथित सेक्युलर नेता, वोटों की मंडी मे आगे निकलने के लिए आने वाले दिनों मे ओसामा बिन लादेन को अपना आदर्श और बैतुल्लाह महसूद को अपना सर्वसम्मति से चुना नेता बताने लगें तो कोई आश्चर्य नही।

मंगलवार, 13 जनवरी 2009

भारत के लोकतंत्र का दर्द

1.   हत्यारे मुख्य मंत्री बने हैं।

2.   जिनको जेल मे सड़ना चाहिए, वे आजाद लोगों को जेल भिजवा रहे हैं।

3.   विदेशी वैज्ञानिकों ने रोबोट बनाए जो अनेक कार्य कर सकते हैं जैसे कारखाने मे, खेल मे पर हमारे देश में एक विदेशी जो वैज्ञानिक नही है, उसने ऐसा रोबोट बनाया जो देश चला रहा है।

4.   जिनसे पूरा क्षेत्र भयभीत होता है, जिन्हें देख लोग घरों मे छिपते हैं, उनकी सुरक्षा जेड प्लस सेक्योरिटी से होती है।

5.   जेल मे बन्द कैदी जिसके रिहाई की अपील अदालत मे रद्द होती थी, अचानक जुगाड़ से मुख्य मंत्री बन जाता है।

6.   आतंकवाद की घटनाओं के बाद यहाँ के टेलीविजन चैनल सुरक्षा कार्यवाही का लाइव टेलीकास्ट कर आतंकी के आकाओं को पल पल की सूचना पहुँचा कर अपना तथाकथित टी.आर.पी. बढ़ाते हैं।

7.   आतंकी जो सैकड़ो निरीह देशवासियों की जान लेता है उसे बचाने हेतु तथाकथित मानवाधिकारी व वोट बैंक के भूखे तथाकथित सेक्युलर नेता आगे आ जाते हैं।

 

दर्द और भी बहुत हैं, फिर कभी

 

सोमवार, 12 जनवरी 2009

शेखावत का तमाशा


 

पराई आग में रोटी सेंकना शायद इसे ही कहते हैं, शेखावत के निम्न स्तर का राजनीति को भरपूर समर्थन देने रा.कां.पा. आ गई। उनहोने यह कह दिया कि उपराष्ट्रपति बनने के पूर्व शेखावत जी ने भा.ज.पा. से इस्तीफा दे दिया था। रा.कां. पा. के महासचिव डी.पी.त्रिपाठी भला ऐसा स्वर्णिम अवसर कैसे गवां सकते थे, सो उन्होने शेखावत के इस कदम का स्वागत किया और उनके लिए समर्थन जुटाने का वादा भी किया। शेखावत को इसका आभार जताना चाहिए के आखिर कोई तो उन्हे अपना घर जलाने के लिए पेट्रोल देने का वायदा किया।

शेखावत जी अपने कदम वापस खीचेंगे, इसकी संभावना कम है परन्तु अभी इस पर कुछ कहा नही जा सकता। कहते हैं इतिहास स्वयं को दोहराता है, शेखावत जी इसे साबित करने पर तुले हुए हैं। पूर्व में भी अपने यहाँ जयचन्द थे, अब नये स्वरूप में शेखावत के नाम से आए हैं। सत्ता का इतना मोह इस वयोवृद्ध नेता को हो गया है कि उन्हे अपना बुरा भला नही देख पा रहे,तथा पार्टी को सत्यानास करने पर तुल गये हैं। कब्र में पॉव लटके हुए हें, किन्तु प्रधान मंत्री का दिवा स्वप्न ठीक दुर्योधन की भाँति देख रहे है भले ही इसकी बड़ी कीमत पार्टी को चुकानी पड़ जाय।

जिस प्रकार पेड़ में अपनी शाखा से अलग होकर कोई डाली हरी भरी नही रह सकती, कुछ ही दिनों मे सूख जाती है तथा उससे पेड़ का कुछ नही बिगड़ता, उसी प्रकार शेखावत जी, जिस पार्टी के सहारे अपनी राजनीतिक स्थिति बढ़ाई उससे बगावत कर स्वयं अपना विनास कर लेंगे। शेखावत नाम की बीमारी का उसी प्रकार इलाज होना चाहिए जिस प्रकार शरीर के किसी अंग मे पनप रहे नासूर का होता है। शेखावत जी संभलो नही तो नाम लेने वाला कोई नही मिलेगा।

रविवार, 11 जनवरी 2009

भाजपा की मुसीबत

आजकल भैरोसिंह शेखावत को क्या हो गया है। वे बिना किसी बात के भाजपा के लिए मुसीबत बन रहे हैं। ऐसा लगता है कि वे छपास रोग से पीड़ित हो गए हैं, उन्हें आराम की बहुत जरूरत है। एक वयोवृद्ध संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता को ऐसा आचरण करना कुछ समझ में नहीं आता। वे उपराष्ट्रपति पद को सुशोभित कर चुके हैं व राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रह चुके हैं, उन्हें अब लोकसभा के चुनाव लड़ने की क्या सूझी है? वे भाजपा के वरिष्ठ नेता हें उनका मूल मकसद पार्टी को सही राह दिखाना होना चाहिये, परन्तु वे अकारण ही पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी कर रहे हैं। एक पुरानी कहावत है सूत न कपास, जुलाहों मे लठ्ठम लठ्ठावही हाल यहाँ है। आगामी चुनाव में क्या होगा, अभी से इसके बारे में कुछ कहना अतिशयोक्ति होगा, परन्तु शेखावत जी को प्रधान मंत्री के सपने आने शुरु हो गये। निम्न स्तर के नेता से तो ऐसा उम्मीद की जा सकती है, जिसका मूल मकसद किसी न किसी प्रकार चर्चा बना रहना होता है, परन्तु उनके जैसे वरिष्ट नेता का ऐसा आचरण करना शोभा नहीं देता।

माना कि भाजपा में कई अवगुण घर कर रहे हैं, उन जैसो का कार्य उन अवगुणों को दूर करना होना चाहिए न कि पार्टी के लिये संकट पैदा करना। उनका यह कहना, कि वे तब से राजनीति में हैं जब राजनाथ सिंह पैदा भी नही हुये थे, कहीं न कहीं ओछी मानसिकता का द्योतक है। उनके मन मे अवश्य ही यह चुभन उठी कि मैं बड़ा हूं और मुझसे अधिक ज्ञानी कोई और कैसे हो सकता है।

अपने देश में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति से बड़ा कोई अन्य संवैधानिक पद नही है, इस पद को सुशोभित कर चुके व्यक्ति के मन में ऐसे विचार आना क्या संकेत देता है? शेखावत जी ने ऐसी बयान बाजी कर के खुद को हम जैसे करोड़ो लोगों की नजरों मे गिरा लिया। अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में कमाई हुई संपदा को पल भर में मिट्टी मे मिला दिया। उनके जैसे व्यक्ति, ऐसे विचार व्यक्त कर समाज व भविष्य के राजनीतिक कर्णधारों को क्या संदेश देना चाहते हैं?  

जिस प्रकार किसी बालक की पहचान उसके माता पिता से होती है, उसी प्रकार किसी भी संस्था से जुड़े व्यक्ति की पहचान उसके संस्था से होती है। कभी- कभी किसी का दिमाग घूमने पर उसे लगता है कि उसका वजूद संस्था से नही बल्कि संस्था का वजूद उससे है, बस यहीं से उसका पतन प्रारम्भ हो जाता है। शायद शेखावत जी को भी यही लग रहा है कि उनसे ही संस्था का वजूद है, इसीलिए बिना सिर पैर की बात कह कर पार्टी को बरबाद करने पर तुल गये हैं। हो सकता है कि उनके दिमाग में कोई कीड़ा घुस गया हो और वे बहक गये हों। ऐसे में उनका इलाज करना आवश्यक है अन्यथा वे इस रोग के कीड़े का संवाहक बन कर अनेकों को बीमार कर देंगे।

राजनाथ सिंह ने जो कहा है कि उच्च संवैधानिक पद को सुशोभित करने के बाद लोकसभा का चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त करना, गंगा स्नान करने के बाद कुएं पर स्नान करने के बराबर है, तनिक भी अनुचित प्रतीत नहीं होता। इस कथन पर शालीनता से विचार करने के बजाय उन्होने तीखी प्रतिक्रिया करते हुये कह दिया कि वे तब से राजनीति मे हैं जब राजनाथ सिंह जब पैदा ही नही हुये थे। यह कह कर वे क्या जताना चाह रहे हैं?, यही न कि वे बहुत वरिष्ठ हैं और उन्हे सब कुछ करने का अधिकार है? अरे शेखावत जी उम्र मे बड़ा होने से कोई बड़ा नहीं हो जाता, बड़ा होने का मतलब यह है के वे बड़प्पन दिखाएं, न कि अत्यन्त निम्न स्तर की राजनीति करें।

शेखावत जी द्वारा लोकसभा के चुनाव लड़ने की बात कहना व उसे कुतर्क से सही सिद्ध करना अत्यन्त निन्दनीय है, ऐसे निन्दनीय कृत्य कर अगर वे अपने आप को वरिष्ठ नेता होने की बात करते हैं तो यह उनके मानसिक दिवालियेपन का द्योतक है, ऐसा कर वे खुद अपना व संस्था का अहित कर रहे हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि उन्होने अपने बड़प्पन को मिट्टी में मिला दिया है, उन्हे अच्छी सीख देने वाले का वे वही हाल करने पर उतारू हैं जैसे कि बन्दर ने बया के घोंसले का किया था।

शेखावत जी ने अपने आप को इतना छोटा कर दिया है कि, वे कुएं को कौन कहे गन्दे नाले में स्नान करने को उतारू हैं। भगवान उन्हे सत्बुद्धि दे।