मुरादाबाद में कांग्रेस की नेत्री रीता बहुगुणा ने एक भाषण दिया, जिसकी भाषा वास्तव में अभद्र थी। हमारे देश के पुरुष नेता मुद्दत से ऐसी भाषा का प्रयोग करते आ रहे है। हमारे देश के इन कथित नेताओं का नैतिक स्तर बहुत पहले से ही रसातल में जा चुका है। जब ये नेता संसद के भीतर भी ऐसा कह जाते हैं कि उन अंशों को संसदीय कार्यवाही से निकालना पड़ता है, तो इनका स्तर क्या है इसकी कल्पना सहज की जा सकती है। महिला आयोग काफी समय से यह प्रयास कर रहा था कि महिलाओं को पुरुष के बराबर अधिकार मिले, अन्य अधिकार अभी भले न मिले हों पर अभद्र भाषा के प्रयोग में उन्होने यह अधिकार हाँसिल कर ही लिया। इस पर महिला आयोग शायद गर्व महसूस करें। मायावती स्वयं भी शालीन भाषा का प्रयोग बहुत कम करती है। रीता बहुगुणा ने महिला होकर भी एक महिला के बारे में ऐसी अभद्र भाषा का प्रयोग किया और इस के कारण उनकी निन्दा होती या कोई मुकदमा चलाया जाता अथवा इस विषय में बहस होती तो बात और थी, परन्तु चर्चा का विषय महिला न होकर दलित महिला का हो गया है जिसकी निन्दा की जानी चाहिये। उन पर मुकदमा भी दलित अपमान का हुआ है गोया यदि उन्होने किसी दूसरी महिला जो दलित समाज से नही आती पर टिप्पणी की होती तो शायद इतना शोर न मचता नही, न ही तथाकथित निष्पक्ष समाचार देने वाले न्यूज चैनल इसकी निन्दा करते। यह बड़े शर्म की बात है कि रीता बहुगुणा के भाषण कि निन्दा होनी चाहिये थी महिला के प्रति अपमान जनक बात कहने की पर निन्दा हो रही है दलित महिला के प्रति अपमान जनक बात कहने की। क्या इस पर कोई विचार करने को तैयार है? आज के इस जातियों में बँटे समाज में शायद नहीं।
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9 वर्ष पहले
2 comments:
बढ़िया लिखा आपने. रीता बहुगुणा ही कौन सी दूध की धुली आपनी पोल खुद ही खोल दी. वही मायावती के बारे में तो आप जानते ही हैं। मेरा ब्लाग पढ़े पता चलेगा उनकी कहानी भी
Sahi kaha aapne.
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शानदार रही लखनऊ की ब्लॉगर्स मीट
.....इतनी भी कठिन नहीं है यह पहेली।
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