गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

सूत्र वाक्य

अरुन्तुदं परुषं रूक्षवाचं, वाक्कण्टकैर्विदन्तं मनुष्यान्।

विद्यादलक्ष्मीकतमं जनानां, मुखे निबद्धां निर्ऋतिं वै वहन्तम्।।

अर्थातः- जो व्यक्ति अपने बुरे स्वभाव और दूसरों से हमेशा कटु और रुखी बातें कर उनके मन को दु:ख देता है। वह वाणी और व्यवहार से दरिद्र होने से हमेशा संकटों का सामना करता है। क्योंकि मुख, शब्द और वाणी की ऐसी दरिद्रता से विवाद व कलह पैदा होते हैं। जिससे उस व्यक्ति के अनेक दुश्मन या विरोधी होते हैं, जो अवसर आने पर किसी भी तरह से प्राणों के लिए घातक साबित होते हैं। यही कारण है कि ऐसे लोगों पर मौत का साया हमेशा बना रहता है।

(इस तरह सार यही है कि अगर व्यक्ति अकाल मौत से बचना चाहे तो सबसे पहले स्वभाव और बोल के दोष से हमेशा बचे।)