अरुन्तुदं परुषं रूक्षवाचं, वाक्कण्टकैर्विदन्तं मनुष्यान्।
विद्यादलक्ष्मीकतमं जनानां, मुखे निबद्धां निर्ऋतिं वै वहन्तम्।।
(इस तरह सार यही है कि अगर व्यक्ति अकाल मौत से बचना चाहे तो सबसे पहले स्वभाव और बोल के दोष से हमेशा बचे।)
यही सत्य है
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