सोमवार, 12 जनवरी 2009

शेखावत का तमाशा


 

पराई आग में रोटी सेंकना शायद इसे ही कहते हैं, शेखावत के निम्न स्तर का राजनीति को भरपूर समर्थन देने रा.कां.पा. आ गई। उनहोने यह कह दिया कि उपराष्ट्रपति बनने के पूर्व शेखावत जी ने भा.ज.पा. से इस्तीफा दे दिया था। रा.कां. पा. के महासचिव डी.पी.त्रिपाठी भला ऐसा स्वर्णिम अवसर कैसे गवां सकते थे, सो उन्होने शेखावत के इस कदम का स्वागत किया और उनके लिए समर्थन जुटाने का वादा भी किया। शेखावत को इसका आभार जताना चाहिए के आखिर कोई तो उन्हे अपना घर जलाने के लिए पेट्रोल देने का वायदा किया।

शेखावत जी अपने कदम वापस खीचेंगे, इसकी संभावना कम है परन्तु अभी इस पर कुछ कहा नही जा सकता। कहते हैं इतिहास स्वयं को दोहराता है, शेखावत जी इसे साबित करने पर तुले हुए हैं। पूर्व में भी अपने यहाँ जयचन्द थे, अब नये स्वरूप में शेखावत के नाम से आए हैं। सत्ता का इतना मोह इस वयोवृद्ध नेता को हो गया है कि उन्हे अपना बुरा भला नही देख पा रहे,तथा पार्टी को सत्यानास करने पर तुल गये हैं। कब्र में पॉव लटके हुए हें, किन्तु प्रधान मंत्री का दिवा स्वप्न ठीक दुर्योधन की भाँति देख रहे है भले ही इसकी बड़ी कीमत पार्टी को चुकानी पड़ जाय।

जिस प्रकार पेड़ में अपनी शाखा से अलग होकर कोई डाली हरी भरी नही रह सकती, कुछ ही दिनों मे सूख जाती है तथा उससे पेड़ का कुछ नही बिगड़ता, उसी प्रकार शेखावत जी, जिस पार्टी के सहारे अपनी राजनीतिक स्थिति बढ़ाई उससे बगावत कर स्वयं अपना विनास कर लेंगे। शेखावत नाम की बीमारी का उसी प्रकार इलाज होना चाहिए जिस प्रकार शरीर के किसी अंग मे पनप रहे नासूर का होता है। शेखावत जी संभलो नही तो नाम लेने वाला कोई नही मिलेगा।