शनिवार, 13 दिसंबर 2008

टिकोला का सत्य

अंधा बांटे रेवड़ी, फिर-फिर अपने को देय।

काना देखा यह करे, और कोऊ न लेय ।।

6 comments:

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

आंध्यां बांटै सीरणी अप अपणा नै दे -
औरां की के फूट-गी, आगा बढ़-कै ले

SHRI RAM SHOP ने कहा…

अच्छा है लगे रहे

रचना गौड़ ’भारती’ ने कहा…

भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
www.zindagilive08.blogspot.com
आर्ट के लि‌ए देखें
www.chitrasansar.blogspot.com

bijnior district ने कहा…

हिंदी लिखाड़ियो की दुनिया में आपका स्वागत।खूब लिखे। अच्छा लिखे,इस शुभकामना के साथ। बधाई

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

bahut hi accha ek prarthna hai ki aap detail mei bhi samjha diya karain to aur bhi sundar aur dil tak aapki awaj pahuinchegi.....
๑۩۞۩๑वंदना शब्दों की ๑۩۞۩๑

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर ...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।