रविवार, 28 दिसंबर 2008

Khali-Bali




शनिवार, 13 दिसंबर 2008

टिकोला का सत्य

अंधा बांटे रेवड़ी, फिर-फिर अपने को देय।

काना देखा यह करे, और कोऊ न लेय ।।

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

अंधेर नगरी (खुला पत्र, डायेक्टर के नाम)

महोदय,

अवगत कराना है कि आपको शायद ही यह ज्ञात कि पावर हाउस टरबाइन पर श्री सच्चिदा नन्द पान्डेय के काकस मण्डली का राज्य चलता है। वे कितने खतरनाक व चालाक है, इसका नजारा हाल में ही आपके द्वारा हटाए गये एक बेहतरीन टरबाइन मेकैनिक श्री नर्वदा प्रसाद के रूप में परिलक्षित हुआ है।

पान्डेय जी की काकस मण्डली में शामिल होने की केवल एक ही शर्त है कि उन्हें मासिक चन्दे के रूप में धन अथवा अपना क्रम आने पर शराब मुहैया कराया जाय। महोदय को उनके ऊपर इतना अन्धविश्वास है कि आप उनके विरुद्ध एक शब्द भी सुनना गवारा नही करते व उनके एक बार के ही कहने पर बिना सोचे समझे एक ही झटके में एक बेहतरीन मेकैनिक को निकाल बाहर किया।

महोदय ने एक बार भी सही तथ्यों को समझने का प्रयास नही किया, कि पाण्डेय जी काकस मण्डली के पॉच सात सदस्यों साथ होते हुए भी कैसे मार खा लिये? यह बात यहाँ मिल में किसी के गले नही उतरती। सच्चाई यह है कि उन लोगों ने ही नर्वदा प्रसाद को मारा व बेशर्मी से मार खाने की बात का दुष्प्रचार किया। इसके पूर्व भी कई प्रसंग आ तुके है कि किसी ने पाणडेय जी को गलती पर टोका तो उन्होने लज्जित होने के बजाय आपसे शिकायत कर दी। गत बन्दी सत्र में ऐसे अनेक उदाहरण सामने आ चुके हैं, यह अलग बात है कि आपको इसकी जानकारी न हो।

पाण्डेय जी ऐसे किसी भी ब्यक्ति को सहन नहीं कर सकते जिसका ज्ञान उनके समकक्ष अथवा अधिक हो इसके उदाहरण पूर्व में भी आ चुके हैं उनका विवरण देना आवश्यक नही है। आपको शायद ज्ञात होगा कि गत वर्ष पाणडेय जी ने मोतीहारी में नौकरी करते हुए कितनी सफाई से बीमारी का बहाना बनाया, यह तो संयोग था कि वहॉ उनकी दाल नहीं गली और वापस आ गये। वैसे उनके जैसे लोगों की दाल केवल यहीं गल सकती है क्योकि यहाँ समने वालों की आँखों पर पर्दा डालना बहुत आसान है। आपको शायद यह विश्वास न हो, परन्तु यह सत्य है कि इस वर्ष टरबाइनों के ओवर हालिंग के दौरान (टरबाइन के खुलने व बॉधने के समय) पाण्डेय जी बिना धूर्तता दिखाए उपस्थित रहे जब कि गत वर्ष इस दौरान वे इलाज कराने के बहाने मोतीहारी में नौकरी कर रहे थे, क्यों? यह केवल इसलिए कि इस बन्दी सीजन में श्री नर्वदा प्रसाद यहाँ थे, ऐसे समय में उनके न रहने पर काम में किसी प्रकार की रुकावट नहीं आती, ऐसा वे कैसे कर सकते थे? हॉ उसके बाद वे अनेकों बार यहॉ से बिना बताए अचानक गायब होते रहे।

नर्वदा प्रकरण में सही तथ्य इस प्रकार हैं

आप जानते ही हैं के 10 मेगा वाट टरबाइन, सेंसिटिव टरबाइन है उस पर बेहतर टरबाइन अटेन्डेन्ट
एंव आयल मैन की ड्यूटी रहनी चाहिए, ड्यूटी शीट में यही ब्यवस्था है. श्री नर्वदा प्रसाद के शिफ्ट आयल मैन को हटा कर दूसरे आयल मैन को भेज दिया गया, इसी बात का विरोध करने पर यह कुचक्र रचा गया. जब नर्वदा ने इस बात का पान्डेय जी से विरोध किया तो उसे बुरा भला व अपशब्द कहे गये, और झगड़ा शुरु किया। बार बार इरीटेट करने पर नर्वदा के मुख से भी अपशब्द निकले, फिर क्या था? पान्डेय जी की काकस मन्डली नर्वदा पर पिल पड़ी,अपने बचाव नें नर्वदा ने भी हाथ पैर चलाए होंगे तो इसमे अनुचित क्या? बेशर्मी की इन्तहा का बड़ा भद्दा स्वरूप इसके बाद शुरू हुआ जिसके अन्तर्गत उनकी पूरी मण्डली छाती पीटने लगी कि नर्वदा ने पान्डेय जी को पीट दिया। शातिर अपराधियों की भाँति इनकी मण्डली इसकी गवाह बन गयी। पान्डेय जी ने छाती पीट पीट कर सभी को छलते रहे, महोदय भी पूर्व की भाँति उनके छलावे में आ गये और बिना सत्यता जाने नर्वदा को निकाल बाहर किया। आपके द्वारा अनजाने में नर्वदा के साथ अन्याय करवा कर पान्डेय जी किसी शातिर अपराधी की भाँति अपनी कुटिल सफलता पर गौरवान्वित होते रहे।

इस घटना का मिल में मौजूद सभी निष्कपट कर्मचारियों को सदमा पहुँचा, कुटिलता से परि पूर्ण चालों को सफल होते देख सामान्य निष्कपट व संवेदनशील कर्मचारियों पर अत्यन्त घातक प्रभाव पड़ा और वे कुटिल ब्यक्तियों द्वारा मिल मिल को क्षति पहुँचाते हुए देखने को विवश हैं, क्योंकि इस काम के रोकने टोकने पर यह उन्ही के ऊपर भारी पड़ेगी।


 


 


  टिकौला मिल का शुभचिन्तक यदि महोदय मानते हों।